इबोला वायरस’
इबोला क्या है?
इबोला वायरस डिसीज़ (ईवीडी) या इबोला रक्तस्रावी बुखार एक गंभीर बीमारी है जिससे मरीज की मृत्यु भी हो सकती है। पूरी दुनिया में इस रोग से पीड़ित मरीजों में 90 प्रतिशत लोग काल के गाल में समा गए। यह बीमारी फिलोविरिदाए परिवार के जीनस इबोला वायरस की वजह से फैलती है। इसकी पांच उप-प्रजातियों की पहचान अब तक हो चुकी है जिनमें से चार वायरस से मनुष्य संक्रमित हो सकते हैं। ये चार हैं- बुंदीबगयो वायरस (बीडीबीवी), इबोला वायरस(ईबीओवी), सुदान वायरस (एसयूडीवी) और टाइ फॉरेस्ट वायरस (टीएएफवी)।
पांचवां वायरस, रेस्टन वायरस (RESTV), से मनुष्यों को रोग नहीं होता।
सबसे पहले यहां फैला:
1976 में पहली बार 2 स्थानों पर एकसाथ फैला। ये हैं- नजारा (सूडान) और यामबुकु (कांगो)। इसका नाम इबोला नदी (कांगो) के ऊपर रखा गया है।
इबोला वायरस एक विषाणु है:
यह वर्तमान में एक गंभीर बीमारी का रूप धारण कर चुका है। इस बीमारी में शरीर में नसों से खून बाहर आना शुरु हो जाता है, जिससे अंदरूनी ब्लीडिंग प्रारंभ हो जाती है यह एक अत्यंत घातक रोग है।इसमें 90% रोगियों की मृत्यु हो जाती है।
इस रोग की पहचान सर्वप्रथम सन 1976 में इबोला नदी के पास स्थित एक गाँव में की गई थी इसी कारण इसका नाम इबोला पडा
इबोला वायरस के लक्षण:
इबोला वायरस के लक्षण संक्रमित होने के बाद 2 से 21 दिन के बीच पाए जाते हैं। इबोला के सामान्य लक्षणों में-
1- बुखार
2- सिरदर्द
3- मांसपेशियों, पेट और जोड़ों में दर्द
4-गले में खराश
5- कमजोरी
6- डायरिया
7- उल्टी या कफ के साथ रक्त आना
8-सीने में दर्द
9-सांस लेने में तकलीफ
10-हिचकी
11-अंदर और शरीर के बाहर रक्त स्राव
रोग फैलने के कारण:
यह रोग पसीने और लार से फैलता है संक्रमित खून और मल के सीधे संपर्क में आने से भी यह फैलता है इसके अतिरिक्त, यौन संबंध और इबोला से संक्रमित शव को ठीक तरह से व्यवस्थित न करने से भी यह रोग हो सकता है यह संक्रामक रोग है
लक्षण:
इसके लक्षण हैं- उल्टी-दस्त, बुखार, सिरदर्द, ब्लीडिंग, आँखें लाल होना और गले में कफ़ अक्सर इसके लक्षण प्रकट होने में तीन सप्ताह तक का समय लग जाता है
रोग में शरीर को क्षति:
इस रोग में रोगी की त्वचा गलने लगती है यहाँ तक कि हाथ-पैर से लेकर पूरा शरीर गल जाता है ऐसे रोगी से दूर रह कर ही इस रोग से बचा जा सकता है
इबोला कैसे फैलता है:
यह अभी तक साफ नहीं हो पाया है कि इबोला वायरस कैसे फैलता है। फिर भी ऐसा कहा जाता है कि जानवरों के शरीर से निकलने वाले तरल पदार्थ से संक्रमित होकर मनुष्यों में भी ये रोग हो सकता है।
इसके बाद खून के सम्पर्क और शरीर से निकलने वाले तरल पदार्थ की वजह से मनुष्यों में भी ये रोग फैलता है।
इससे संक्रमित पुरुषों के ठीक होने के बाद भी सात हफ्तों तक उनके वीर्य में इसका प्रभाव बना रहता है जिससे यौन संबंध बनाते वक्त महिला साथी भी इबोला से संक्रमित हो सकती है।
इबोला से मरने वाले व्यक्तियों की लाशों से भी यह रोग फैल सकता है।
कौन हो सकता है संक्रमित:
हेल्थ केयर वर्कर, जो इलाज के समय सुरक्षित कपड़े नहीं पहनते और मास्क नहीं लगाते वो मरीज़ों के सीधे संपर्क में आने के बाद इससे संक्रमित हो सकते हैं। इसी तरह मरीज के परिवारीजन भी उसके साथ उठने- बैठने से संक्रमित हो सकते हैं।
उपचार:
अभी इस बीमारी का कोई ईलाज नहीं है इसके लिए कोई दवा नहीं बनाई जा सकी है इसका कोई एंटी-वायरस भी नहीं है
इतना ख़तरनाक क्यों है इबोला ?
पश्चिम अफ़्रीकी देशों गिनी, सियेरा लियोन और नाइजीरिया में इबोला वायरस के संक्रमण के अब तक क़रीब 930 लोगों की मौत हो चुकी है. लाइबेरिया ने इस बीमारी के चलते आपातकाल घोषित कर दिया है.
ये लक्षण बीमारी की शुरुआत भर होते हैं. इसका अगला चरण है उल्टी होना, डायरिया और कुछ मामलों में अंदरूनी और बाहरी रक्तस्राव.
मनुष्यों में इसका संक्रमण संक्रमित जानवरों, जैसे, चिंपैंजी, चमगादड़ और हिरण आदि के सीधे संपर्क में आने से होता है.
संक्रमण:
एक दूसरे के बीच इसका संक्रमण संक्रमित रक्त, द्रव या अंगों के मार्फ़त होता है. यहां तक कि इबोला के शिकार व्यक्ति का अंतिम संस्कार भी ख़तरे से ख़ाली नहीं होता. शव को छूने से भी इसका संक्रमण हो सकता है.
बिना सावधानी के इलाज करने वाले चिकित्सकों को भी इससे संक्रमित होने का भारी ख़तरा रहता है.
संक्रमण के चरम तक पहुंचने में दो दिन से लेकर तीन सप्ताह तक का वक़्त लग सकता है और इसकी पहचान और भी मुश्किल है.
इससे संक्रमित व्यक्ति के ठीक हो जाने के सात सप्ताह तक संक्रमण का ख़तरा बना रहता है.
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक़, उष्णकटिबंधीय बरसाती जंगलों वाले मध्य और पश्चिम अफ़्रीका के दूरदराज़ गांवों में यह बीमारी फैली. पूर्वी अफ़्रीका की ओर कांगो, युगांडा और सूडान में भी इसका प्रसार हो रहा है.
तेज़ी से प्रसार:
पू्र्व की ओर बीमारी का प्रसार असामान्य है क्योंकि यह यह पश्चिम की ओर ही केंद्रित था और अब शहरी इलाक़ों को भी अपनी चपेट में ले रहा है.
इस बीमारी की शुरुआत गिनी के दूर दराज़ वाले इलाक़े ज़ेरेकोर में हुई थी.
बीमारी का प्रकोप देखते हुए स्वयंसेवी संस्था मेडिसिंस सैंस फ्रंटियर्स ने इसे ‘अभूतपूर्व’ बताया है.
डब्ल्यूएचओ द्वारा जारी दिशा निर्देश के अनुसार, इबोला से पीड़ित रोगियों के शारीरिक द्रव और उनसे सीधे संपर्क से बचना चाहिए.
साथ ही साझा तौलिये के इस्तेमाल से बचना चाहिए क्योंकि यह सार्वजनिक स्थलों पर संक्रमित हो सकता है.
डब्ल्यूएचओ ने मुताबिक़ इलाज करने वालों को दस्ताने और मास्क पहनने चाहिए और समय-समय पर हाथ धोते रहना चाहिए.
चेतावनी:
चमगादड़, बंदर आदि से दूर रहना चाहिए और जंगली जानवरों का मांस खाने से बचना चाहिए.
रोकथाम:
इसके संक्रमण को निम्न सलाहों के द्वारा रोका जा सकता है-
-संक्रमित रक्त के संपर्क में आने से बचें और इससे संक्रमित मनुष्य के मृत शरीर के पास भी जाने से बचना चाहिए।
-सभी रोगियों को सावधानी रखनी चाहिए।
-डॉक्टर और परिजनों को हमेशा सुरक्षित कपड़े, मास्क, ग्लव्स और गाउन पहनकर ही मरीजों से मिलना चाहिए।
– हाथों को साबुन से धोना चाहिए।
-अपने आस-पास सफाई ज़रूर रखनी चाहिए।
-इबोला संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने से बचना चाहिए।
-इबोला वायरस से संक्रमित पशुओं या मुर्गी का मांस खाने से बचना चाहिए।
-इबोला संक्रमित शहरों या देशों में यात्रा नहीं करनी चाहिए।
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